Warli tribe's important facts which makes Warli to be Proude

P.C:Artzolo
1। वारलि आदिवासी भारत की प्राचीनतम जनजाति में से एक जनजाति है। जिसका उल्लेख हमें 2 B.C पहले लिखी गई किताबो में भी मिल जाता है।

2। उनका खुदका एक राज्य था जिसको वारलखंड कहा जाता था। जो इलाका आज का गुजरात का वलसाड जिल्ले से लेके महाराष्ट्र के ठाणे तक फैले हुआ था। यह जनजाति का उदगम स्थान ही यही विस्तार है। और उनका मुलस्थान भी यही है इसलिए, सदियों से यह स्थान को वारलखंड कहा जाता है। जिसका प्रमाण हमें कई जागो से मिल जाता है। वलसाड का पुराना नाम वारलखंड है, उकसा प्रमाण हमें गुजरात गवर्मेंट की बाहोत सारी किताबो से मिल जाता है।

3। इस 1300 तक यह स्थानों पे वारली राजाओं का राज था, जिसका उल्लेख हमें इतिहास से मिलता है। वारली एक लड़ाकू आदिवासी थे जो अपना निर्वाह सीकार करके करते थे। कई कई इतिहास कार मानते है, की भील जनजाति और वारलि जनजाति में साम्यता है।

4। वारली संस्कृति प्रुकृती पूजा में माननेवाली जनजाति है, जिसका हिन्दू धर्म के साथ संपर्क होने से उनमें थोड़े अंधविश्वास बढ़ गये है। लेकिन आज भी वारली आदिवासियों ने प्रकृति पूजा कि प्रथा जारी रखी है।

5। वारली आदिवासी अपनी संस्कृति के साथ पहले से  आजतक जुड़ा हुआ है,और आज भी उसको मानता रहा है, उसका उत्तम उदाहरण है। वारली पेंटिंग जिसको वारली समुदाय की स्त्रीया सदियों से अपने हर प्रसंग पे खास कर के शादी जैसे मोको पे अपने घर दिवालो पे इसका ड्राइंग करते थे। जिसमे प्रकृति से जुड़े उनके देवो का उल्लेख ज्यादातर रहेता था। यह पेंटिंग की खासियत है कि बहुत कुछ छप्पो में भी बहुत कुछ बयान कर सकते है, और यह देखने में भी बहुत ही सुन्दर रहती है। इसलिए इस पेंटिंग को आज इंटरनेशनल ख्याति मिली हुई है। आज हर जगह हमें वार्लि पेंटिंग देखने को मिलेगी, इसलिए आज वर्ली समाज को अपने पे गर्व होना चाहिए। और हमें हमारी संस्कृति का जनत करना चाहिए।
वारली पेंटिंग को, इंटरनेशनल ख्याति पे पहूचाने वाले पद्मश्री जिव्यामहसे सोमा जी को हमें नहीं भूलना चाहिए। जिन्होंने वारली पेंटिंग की इस ख्याति में प्राण फुके थे।

History of Varli/ Warli Tribe | वारली जनजाति का इतिहास

History of Warli Tribe: Warli (वारली) Tribe भारत की आदिम जनजाति (आदिवासी) है। वह भारत के मूल निवासी है। आज हम वारली (Warli) जनजाति (Tribe) history जानेंगे 

वारली जनजाति महाराष्ट्र और गुजरात के पहाड़ी इलाको ओर सामुद्रिक तटीय विस्तरो में रहते है। उनके पास अपनी जानकारियों का विश्वास है, परंपराएं और खुदकी मान्यताये हैं, हालांकि एकता के परिणामस्वरूप उनमे से कई लोगों ने हिंदू विश्वास को अपनाया था। एक अलिखित वारीली भाषा बोलते हैं जो इंडो-आर्यन भाषाओं के दक्षिणी क्षेत्र से संबंधित है। 

वारली लोग पेंटिंग (Warli Painting) की अपनी खूबसूरत और अनोखी शैली के लिए प्रसिद्ध हैं जो मानव समुदाय और प्रकृति के बीच करीबी सहयोग को दर्शाता है। वारली लोगो की पैंटिंग ने अभी के दौर में बहोत नाम कमाया है।

वारली समुदाय की हिस्ट्री (Varli tribe history) :

वारली की हिस्ट्री (Warli's History) का अगर हम किताबी सोर्स देखे तो वह, तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व में, एक यूनानी नृवंशविज्ञानी मेगस्टेनस्टेग ने चंद्रगुप्त मौर्य के न्यायालय में एक राजदूत के रूप में भारत का दौरा किया। उस समय पे महाराष्ट्र के थाणे इलाके से गुजरात पास धरमंपुर के आसपास वर्तमान में चारों ओर वैरलाता नामक एक क्षेत्र की लिखित बात करते हैं। कुछ विद्वानों का मानना ​​है कि यह वह जगह है जहां वारली लोग उत्पन्न होते हैं, वह 'वैरलाता" वारलीओ का खुदका एक इलाका था। तब डोडिया,कोकणा और आदि जनजाति वह वहां की मूल जानजाती नही थी। कहा जाता है कि वह आसपास के इलाकों से स्थायी हुई जनजातीय है।
          

वारली आदिवासी अपने इलाको में एक जगह से दूसरी घूम के जीवन जीते थे। क्यो की उस समय पे वह इलाको में जंगल बहुत था। उनको खाने की सारी चीज़ें वही आसानी से मिल जाती थी। ओर वह लोग सीकार करने में भी माहिर थे। उनकी सोचभी बहोत रचनात्मक थी। वह लोग काम को अच्छे से ओर आसानीसे निपटा ने में विश्वास रखते थे।
         

जब अंग्रेजों ने जमीन पर राज्य करना शुरू कर दिया, तो उन्होंने इन जनजातियों में से कई को मजबूर कर दिया  एक स्थान पर बसने के लिए।  जो कि स्थानांतरित कृषि करने का अभ्यास करते थे. अंग्रेजो का लक्ष्य ठाणे के आसपास का क्षेत्र बनाना था, क्यों की वह क्षेत्र संसाधनो से भरपूर था, अंग्रेजो को लडकिया वगेरा बहोत आसानी से मिल सकता था , जंगले  इतना था की पहाड़ भी जंगल से दक जाते थे, और घास भी घाटियो के साथ ऊंचा हो गया था। उंबरगाँव और दहनु के बीच तट के किनारे, और आसपास के विस्तार में  पेड़ों काफी बड़े थे बहुत से पेड़ 80 फूट से ज्यादा के थे.

वारली जनजाति, 19 वीं शताब्दी के मध्य में, बसने और खेती शुरू करने के लिए मजबूर थे। भारत में घरों, पुलों और रेलमार्गों के निर्माण के लिए, बल्कि ज्यादातर आर्थिक गतिविधियों को चलाने लिए, अंग्रेजों को बहुत लकड़ी की जरूरत थी इससे वन स्वामित्व की पुरानी अवधारणा  में भारी बदलाव आया। भारत में सभ्यता की शुरुआत के बाद से, वन को हमेशा एक सामुदायिक संसाधन माना जाता था। यह कई जनजातियों के लिए घर था अब, ब्रिटिशों ने इन जंगलों को नियंत्रित किया है। आदिवासियों को बाहर जाने के लिए मजबूर किया गया। अंग्रेजो ने जमींदारों प्रणाली लागु की । जिसमे  ऊपरी जाति, जो अमीर थे, उन्हें भूमि का टुकड़ा मिला, जबकि आदिवासियों, जो अब निर्वाह का कोई साधन नहीं था, उन्हें जमींदारों और अंग्रेजों के स्वामित्व वाले खेतों में श्रमिक श्रम के रूप में काम करने के लिए मजबूर किया गया था। हालांकि पिछली कई शताब्दियों तक जाति व्यवस्था भारत में चल रही थी, जंगलों से जनजातियों का पलायन हुआ, जिन्हें पहले अपने समुदायों में गरिमा  थी (जो अपने में सर्व श्रेष्ठ था ), अब वे समाज के सबसे कम चरण में सेवा करने के लिए मजबूर हुए थे,।

1947 में ब्रिटिश छोड़ने के बाद, वारली संस्कृति के अवशेषों ने ठाणे जिले के जंगलों और गांवों में अपना अस्तित्व जारी रखा। उन्हें जल्द ही कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया द्वारा संपर्क किया गया, जिन्होंने सरकार के खिलाफ विद्रोह में समुदाय को जुटाने की कोशिश की, जिसे सीपीआई एक बाहरी व्यक्ति और शोषक के रूप में चित्रित करता है।

हालांकि, सीपीआई का प्रभाव धीरे-धीरे बढ़ गया। सरकार और गैर-सरकारी एजेंसियां ​​फिर वारली समुदाय की मदद करने के लिए आईं। वनवासी कल्याण आश्रम जैसे संगठन ने शिक्षा और स्वास्थ्य देखभाल के क्षेत्र में पिछले कुछ दशकों से आदिवासी वारली समुदाय में कुछ शानदार काम किए हैं।

वारली जनजाति एक राष्ट्रीय और एक अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिष्ठा पर पहुंच गई, हालांकि, केवल 1970 के दशक में। भारत सरकार ने कुछ अधिकारियों को वारली कला दस्तावेज के लिए भेजा था। अधिकारियों को एक 'जीव्या सोमा महसे' के चित्रों ने आश्चर्यचकित किया था, जो वारली चित्रों को चित्रित करने में बहुत उबाऊ था। परंपरागत वारली कला केवल औपचारिक अवसरों के लिए तैयार की जा रही थी, "जीव्या सोमा महसे", जो (चित्रकला) ड्राइंग से प्यार करते थे और वारली संस्कृति की अत्यधिक समझ रखते थे, उन्हों ने अपने आसपास के लोगो से वारली कला का गहरा अध्ययन किया था और, इस कला को विश्व स्तर पे लाने की कोसिस की, वारली  कला धीरे-धीरे विभिन्न एजेंसियों, गैर सरकारी संगठनों और व्यवसायों के प्रयासों के माध्यम से राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मान्यता में लाई गई थी। 'जिव्या सोमा महसे' ने भारत की कला के प्रति उनके योगदान के लिए 2010 में भारत सरकार से पद्मश्री जीता है।

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Varli Surnames Warli Surnames

Warli Surname List:


A

Adga, Andher, Araj, Ayari    


B

Badal, Bambhane, Bandur, Baraf, Barat, Barga, Baswat, Banthra, Beej, Belkari, Bendar, Bhad, Bhangre, Bhasar, Bhawar, Bhimra, Bhoi, Bhurkund, Boba, Bind, Bodhlya, Bondar, Budhar, Bajar, Burud.

Varli fastivals

Divali
Nava varis
Holi
Akhatrij
Pirni cha dev
Tarpa mahotsav
Kapni cha dev
Havan
Panchave

History of Warli Painting | Why Warli name had given to the painting art?

History of Warli Painting: Warli trible paintings belongs to the state of Maharastra and Gujarat in western indian.The Warli painting is discovered by the word as late as seven decade of the last century. 

This art from simple compare to vibrant paintings from madhubani. The only colour used in Warli painting is white. This colour is obtain from grouding RICE into white powder..normally this painthing is created on mudes wall of warli's houses.when woman are engaged in creation of this painting 
,this painting do not depict mythologgical character or image of deities, but depict social life. image of human beings and animals, along with scenes from daily life are created in loose rththmic pattern. nestled at the foot of the western ghat range in maharashtra, gujarat in india, is the settlement of an ancient tribe known as the Warlis. 

These tribe people, who survive on forest produce and worship nature, have carved an international niche for themselves by virtue of their artistry. what originated as a domestic ritual of ceremonial beautification is now revered as a flock art of immense value..

who is warli people where they lives?




The warli are an aboriginal tribe living in the north-eastern part of the indian including gujarat ,maharastra,border area near in silvasa,Daman,they lives in mountain as well as coastal area of gujarat s state of valsad,dang,surat, district, as well as in maharastra state dahanu,jawar,talasari of thane district and nashik.dulhe districk,especially on the estern slopes of Sahyadris.Warli speaks their own indo-arya dailect,which is mixed of khandeshi bhil,gujarati and marathi. they also speak gujarati and marathi .